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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2694
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र

अध्याय - 1
फैशन एवं वस्त्र डिजाइन के सन्दर्भ में डिजाइन विश्लेषण
(Design Analysis with respect to Fashion and Textile Design)

प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।

अथवा
कला के तत्वों से आप क्या समझती हैं? विभिन्न प्रकार की रेखाओं के प्रभाव उदाहरण सहित बताइए।
अथवा
परिधान में रेखाओं से आप क्या समझती हैं? कितने प्रकार की रेखाएँ आप जानती हैं? इन रेखाओं का लम्बी एवं पतली महिला पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
कला के तत्वों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
डिजाइन/कला के तत्व क्या हैं ? रेखा एवं उनके प्रभाव को विस्तृत रूप से समझाइए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
विभिन्न प्रकार की रेखाओं और उनके प्रभावों पर एक टिप्पणी लिखिए।
अथवा
रेखा के प्रकार एवं प्रभाव समझाइये।

उत्तर - 

कला के तत्व
(Elements of Art)

कला के तत्व जो कि समस्त दृश्य कलाओं का मौलिक आधार है, निम्नलिखित हैं-

(1) रेखा (Line)
(2) आकार (Form)
(3) ́ नमूना (Design)
(4) पोत (Texture)
(5) रंग (Colour)

परिधान की दृष्टि से उपर्युक्त पाँच तत्व ही महत्वपूर्ण होते हैं। अन्य दो तत्व प्रकाश (Light) और रिक्त स्थान का महत्व गृह योजना व वास्तुकला की दृष्टि से अधिक है।

यद्यपि यह आवश्यक नहीं है कि इन तत्वों का उपयोग करने से सजावट निश्चित ही सुन्दर दिखाई देगी, किन्तु इन तत्वों का उपयोग व्यक्ति अपने निर्देशक के रूप में कर सकता है व सजावट को आकर्षक बनाने का प्रयत्न कर सकता है।

परिधान में कला के तत्व
(Elements of Art in Clothing)

(1) रेखा (Line) रेखाओं के सही उपयोग के लिए यह समझना आवश्यक है कि रेखाएँ क्रियात्मक और संवेदनात्मक प्रभाव उत्पन्न करती हैं। यद्यपि रेखा के दो आधारभूत प्रकार होते हैं— सीधी रेखा और वक्र रेखा। किन्तु यह दोनों रेखाएँ कई प्रकार की रेखाओं को जन्म देती हैं। सीधी रेखा को सीधी (vertical), चपटी (horizontal) और झुके हुए(diagonal) रूप में प्रस्तुत किया जा सकता हैं।

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यह रेखाएँ लगातार भी हो सकती हैं या विभिन्न कोणों से संयुक्त हो सकती हैं। वक्र रेखा गोलाकार रूप में पूर्ण चन्द्रमा के समान या चपटे रूप में प्रदर्शित की जा सकती है। किसी भी रूप में रेखा का उपयोग किया जाए इसमें आकर्षण उत्पन्न करने की तीव्र शक्ति रहती है।

सीधी रेखा (Straight Line) सीधी रेखा कठोरता उत्पन्न करती है और गम्भीरता का भाव प्रदर्शित करती है। फिर भी इसकी दिशा नमूने पर प्रभाव डालती है। सीधी रेखा दृढ़ता का भाव प्रदर्शित करती है जबकि चपटी रेखा शान्त और सौम्य होती है। तिरछी या झुकी हुई रेखा दोनों का संयोजन सन्तोषजनक रूप से प्रस्तुत करती है।

वक्र रेखा (Curved Line) – दूसरी ओर वक्र रेखा एकदम भिन्न भाव प्रदर्शित करती है और यह सीधी रेखा की अपेक्षा अधिक आकर्षक दिखती है। पूर्ण वक्र एकरूपता प्रस्तुत करता है। सबसे अधिक आकर्षक वक्र रेखा वह होती है जो तिरछी दिशा में होती है। वक्र रेखा अर्धचन्द्राकार, पूर्ण बड़ा वक्र या छोटे गोल वक्र आदि किसी रूप में हो सकती है।

दबाव रेखा (Dominent Line) - जब बहुत अधिक रेखाओं को एक साथ प्रस्तुत किया जाता है, जैसा कि अधिकतर ड्रेस में किया जाता है, तो आँख सबसे अधिक तीव्र रेखा (strongest line) पर ठहरती हैं। इस प्रतिक्रिया के कारण शरीर की आकृति पर बल दिया जा सकता है, और कुछ क्षेत्रों पर आकर्षण उत्पन्न करके आकृति के दोषों को छिपाया जा सकता है। यदि हम सुन्दर चेहरे पर बल केन्द्रित कर देंगे तो शरीर का खराब अनुपात दृष्टिगोचर नहीं होगा।

(1) रेखाओं का प्रभाव (The Effect of Line) - चूँकि रेखा परिधान के आकर्षण में वृद्धि करने का प्रमुख तत्व है, इसलिए परिधान की शैली के चयन में रेखा प्रथम स्थान रखती है। हम अपना जो भी पूर्णरूप संसार के सामने प्रस्तुत करते हैं वह रेखाओं पर निर्भर करता है, न केवल पहने जाने वाले कपड़े द्वारा वरन् हमारे चेहरे और आकृति के द्वारा भी वह प्रभावित होता है। रेखाएँ शरीर की आधारभूत आकृति को विभाजित करती हैं। गले की रेखा (neck lines), बाँहों की रेखा (Sleeve lines), कमर रेखा (waist lines) और हेम रेखा (hem lines) विभिन्न विभाजक रेखा होती हैं जो कि आकार और स्थान निर्मित करती हैं। वह रेखाएँ नमूने को रुचिप्रद और आकर्षक बनाती हैं जो कि आँखों को सुन्दर लगे। यदि प्रत्येक रेखा की दिशा और स्थान का उचित ध्यान नहीं रखा जाएगा तो इसका परिणाम भ्रम उत्पन्न करने वाला होगा।

परिधान में रेखाओं का उपयोग (Use of Line in Clothing)—यह विश्वास करना कठिन होता है कि कई बार हमारी आँखें धोखा खा जाती हैं, क्योंकि हम किसी वस्तु को इतने अधिक आकर्षक रूप में प्रस्तुत करते हैं कि उस वस्तु की वास्तविकता छिप जाती है। हम रेखाओं द्वारा किस प्रकार आश्चर्यजनक प्रभाव प्रस्तुत कर सकते हैं, यह निम्न उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगा-

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इस चित्र को देखकर हम सहज ही कह उठेंगे कि पहली रेखा दूसरी की अपेक्षा छोटी है। जबकि यदि हम इन रेखाओं को नापेंगे तो पाएँगे कि यह एक समान लम्बाई की हैं।

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इस चित्र में सीधी रेखाएँ वक्र दिखाती हैं जबकि यह वास्तव में सीधी रेखाएँ हैं।

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इस चित्र में दो आयताकार हैं। पहला चित्र खड़ी रेखा द्वारा विभाजित होने से सँकरा दृष्टिगत होता है जबकि दूसरा चित्र चपटी रेखा द्वारा विभाजित होने से चौड़ा दिखता है।

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इस चित्र में पास-पास खड़ी रेखाओं से आयताकार और अधिक संकरा दृष्टिगत होता है, जबकि दूर-दूर खड़ी रेखाओं से चौड़ा दिखता है।

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इस चित्र में आयताकार तिरछी रेखा द्वारा विभाजित किया गया है। पहले चित्र में जहाँ तिरछी रेखा ऊपरी रेखा से प्रारम्भ होती है आयताकार संकरा प्रतीत होता है। जबकि दूसरे चित्र में जहाँ तिरछी रेखा एक ओर से प्रारम्भ होती है आयताकार अपेक्षाकृत चौड़ा प्रतीत होता है।

यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि इन ज्यामितीय आकारों का उपयोग हम परिधान की डिज़ाइन में कर सकते हैं। इन सिद्धान्तों का उपयोग हम अपने वस्त्रों में करके स्वयं को लम्बा और पतला या छोटा या मोटा प्रदर्शित कर सकते हैं।

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चित्र में पहली रेखा में कोई विपरीत दबाव नहीं है इसलिए आँखें ऊपर से नीचे तक रेखा पर घूमती हैं जो कि ऊँचाई को प्रदर्शित करती हैं। दूसरी रेखा में विपरीत चपटी रेखा होने के कारण आँखें एक ओर से दूसरी ओर घूमती हैं जिससे छोटेपन का भाव प्रदेर्शित होता है। तीसरी रेखा में आँखें तिरछी नीचे झुकी हुई रेखा के कारण नीचे केन्द्रित होती हैं जिससे यह रेखा दूसरी रेखा की अपेक्षा छोटी प्रदर्शित होती है। 'चौथी रेखा में तिरछी रेखाएँ आँखों को ऊपर की ओर ले जाती हैं जिससे यह सभी रेखाओं की अपेक्षा बड़ी प्रतीत होती है।

(2) आकार (Shape) - केवल रेखाओं के द्वारा ही भाव प्रदर्शित नहीं होते वरन् भाव प्रदर्शित करने के लिए आकार का भी उपयोग किया जा सकता है। जहाँ आकार रेखाओं द्वारा विभाजित होता है वहाँ विभिन्न भाव प्रदर्शित होते हैं। जैसा कि हमने देखा था कि चपटी रेखा से आयताकार चौड़ा प्रतीत होता है जबकि लम्बवत् रेखा से लम्बा। परिधान की डिजाइन में यही सिद्धान्त उपयोग में लाया जा सकता है। नितम्ब तक की लम्बाई की ड्रेस और जैकेट वही भाव प्रदर्शित करते हैं जो कि आयताकार में चपटी रेखा द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जबकि सामान्य सीधा फ्राक जो कि सामने से खुला हो वह वही प्रभाव उत्पन्न करता है जो आयताकार में खड़ी रेखा द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

बड़े आकार को छोटे भागों में विभाजित करके भी विभिन्न प्रभाव उत्पन्न किये जा सकते हैं। जैसा कि हमने देखा था कि संकरी रेखाओं द्वारा विभाजित करने से आयाताकार संकरा प्रतीत होता है जबकि चौड़ी रेखाओं द्वारा चौड़ेपन का आभास होता है।

यद्यपि रेखाओं का सामान्य सिद्धान्त है कि चपटी रेखा चौड़ेपन का आभास देती हैं और खड़ी रेखा सँकरेपन का आभास देती है, पर इस नियम का भी अपवाद होता है।

(3) तन्तु के नमूनों का प्रभाव (The Effect of Fabric Design) - तन्तु के नमूनों जैसे धारियों और छपाई (Prints) का उपयोग करके भी परिधान पर उचित आकर्षण उत्पन्न किया जा सकता है। यदि केवल रेखाओं द्वारा परिधान पर प्रभाव उत्पन्न किया जाए तो कठिनाई होती है।

परिधान में धारियों का उपयोग (Use of Stripes of Clothing) - धारियाँ भिन्न-भिन्न चौड़ाई, रंग और उनकी व्यवस्था के कारण नये-नये आकर्षण हर समय प्रस्तुत करती हैं। धारियाँ न केवल आकर्षण उत्पन्न करती हैं वरन् विभिन्न प्रभाव भी उत्पन्न करती हैं। सामान्यतः लम्बी धारियों से व्यक्ति लम्बा और पतला दृष्टिगत होता है, पर यह बिल्कुल निश्चित नियम नहीं हैं। कई लम्बी धारियाँ व्यक्ति को चौड़ा भी प्रदर्शित करती हैं। यही सिद्धान्त चपटी धारियों पर भी लागू होता है। सामान्यतः चपटी रेखाओं से व्यक्ति ठिगना और चौड़ा प्रतीत होता है, किन्तु इन्हीं धारियों से व्यक्ति लम्बा भी नजर आ सकता है। यह सब इस वस्त्र पर निर्भर करता है कि हमारी आँखें धारियों की चौड़ाई और उनकी बीच की दूरी पर किस प्रकार प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं।

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धारियों के विभिन्न उपयोग

उपर्युक्त चित्र में (a) और (b) लम्बी धारियाँ हैं जिसमें चित्र (a) लम्बाई का प्रभाव उत्पन्न करता है जबकि (b) चौड़ाई का। उसी प्रकार (c) और (d) चपटा रेखाओं में (c) चौड़ाई का प्रभाव उत्पन्न करता है जबकि (d) लम्बाई का।

(4) तन्तु के पोत का प्रभाव (The Effect of Texture of Fabric)—रेखा के समान तन्तु का पोत भी व्यक्ति की आकृति पर विभिन्न प्रभाव उत्पन्न करता है। वह तन्तु प्रकाश का अभिशोषण करता है या परावर्तन, वह खुरदुरा है या चिकना, आदि बातें व्यक्ति की आकृति पर प्रभाव उत्पन्न करती हैं।

प्रकाश परावर्तन का प्रभाव (Effect of Light Reflection) - चमकदार तन्तु जो कि बहुत मात्रा में प्रकाश परावर्तित करता है व्यक्ति की आकृति में वृद्धि करता है जबकि खुरदुरी सतह आकृति को छोटा करती है। यदि कोई मोटा व्यक्ति लम्बी सीधा रेखाओं की डिजाइन का चुनाव बहुत ही चमकदार सेटिन के कपड़े पर करे तो वह उसके लिए अनुपयुक्त होगा।

कुछ तन्तु प्रकाश को अवशोषित भी करते हैं और परावर्तित भी। मखमल (Valvet) इसका एक उत्तम उदाहरण है जिसमें रोएँ प्रकाश ग्रहण करते हैं और छाया प्रस्तुत करते हैं जबकि पृष्ठभूमि प्रकाश परावर्तित करती है।

खुरदुरे और चिकने पोत का प्रभाव (Effect of Rough & Smooth Textures)—खुरदुरी सतह आकार में कमी करती है। चिकना पोत आकृति पर कोई प्रभाव नहीं डालता जब तक कि वह चमकदार न हो।

कड़ा पोत (Stiff Texture) – कड़े पोत शरीर की आकृति में वृद्धि कर देते हैं। उदाहरणार्थ यदि एक व्यक्ति जिसके नितम्ब भारी हों पर कमरा रेखा और वक्ष रेखा उसकी ऊँचाई के अनुपात में ठीक हो तो उसके लिए कड़ा पोत उपयुक्त होगा, किन्तु ऐसा व्यक्ति जो कि पूरे शरीर में भारी है उसके लिए अनुपयुक्त होगा।

पारदर्शी पोत (Transparent Textures) – यदि इसे उपयुक्त तहों द्वारा बनाया जाये तो आकर्षक दिखता है, किन्तु यह लम्बे पतले शरीर के लिए अनुपयुक्त होता है।

(5) रंग (Colour) — रंग कला का महत्वपूर्ण तत्व है। विभिन्न रंगों का प्रयोग करके वस्त्रों को सुन्दर एवं आकर्षक बनाया जाता है। नमूना बनाते समय विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है, ताकि उसे देखकर प्रसन्नता का अनुभव हो। रंगों का प्रयोग हमारी व्यक्तिगत रुचि पर निर्भर करता है। रंग का मुख्य स्रोत प्रकाश होता है जिससे सात रंग उत्पन्न होते हैं। रंग व्यक्ति को मानसिक रूप से प्रभावित करते हैं जैसे यदि किसी विशेष अवसर पर विशेष रंग की पोशाक पहनते हैं और हमारा काम बन जाता है तो उस पोशाक को हम 'भाग्यशाली पोशाक मानने लगते हैं और भविष्य में वह रंग हमारा 'पंसदीदा रंग' बन जाता है। रंगों का उपयोग फैशन के अनुसार भी किया जाता है। उदाहरण के तौर पर आपने देखा होगा कि विशेष समय में एक रंग का फैशन आता है, जैसे—-बाजार में वस्त्रों में हरे रंग का फैशन आने पर सभी लोग अधिकतर हरा रंग पहनना पसन्द करते हैं। रंगों का सौन्दर्यात्मक प्रभाव होने के साथ-साथ संवेगात्मक प्रभाव भी होता है। व्यक्ति पर विभिन्न रंगों का विभिन्न प्रभाव होता जैसे-

लाल रंग ----------------  उत्सुकता, उत्तेजकता, खतरा
पीला रंग ---------------  खुशी, जोश, खिला हुआ
हरा----------------------  मित्रता, सुहावना, ठण्डा
नारंगी ------------------  प्रसन्नता, उल्लास, उत्साह
नीला -------------------   शान्त, गम्भीर, ठण्डा
जामुनी------------------  प्रभावी, चमकीला
सफेद ------------------- स्वच्छ, शुद्ध, ठण्डा

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- डिजाइन के तत्वों से आप क्या समझते हैं? ड्रेस डिजाइनिंग में इसका महत्व बताएँ।
  2. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्तों से क्या तात्पर्य है? गारमेण्ट निर्माण में ये कैसे सहायक हैं? चित्रों सहित समझाइए।
  3. प्रश्न- परिधान को डिजाइन करते समय डिजाइन के सिद्धान्तों को किस प्रकार प्रयोग में लाना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
  4. प्रश्न- "वस्त्र तथा वस्त्र-विज्ञान के अध्ययन का दैनिक जीवन में महत्व" इस विषय पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  5. प्रश्न- वस्त्रों का मानव जीवन में क्या महत्व है? इसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
  7. प्रश्न- अच्छे डिजायन की विशेषताएँ क्या हैं ?
  8. प्रश्न- डिजाइन का अर्थ बताते हुए संरचनात्मक, सजावटी और सार डिजाइन का उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- डिजाइन के तत्व बताइए।
  10. प्रश्न- डिजाइन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- अनुपात से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- आकर्षण का केन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- अनुरूपता से आप क्या समझते हैं?
  14. प्रश्न- परिधान कला में संतुलन क्या हैं?
  15. प्रश्न- संरचनात्मक और सजावटी डिजाइन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- फैशन क्या है? इसकी प्रकृति या विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- फैशन के प्रेरक एवं बाधक तत्वों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- फैशन चक्र से आप क्या समझते हैं? फैशन के सिद्धान्त समझाइये।
  19. प्रश्न- परिधान सम्बन्धी निर्णयों को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
  20. प्रश्न- फैशन के परिप्रेक्ष्य में कला के सिद्धान्तों की चर्चा कीजिए।
  21. प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
  22. प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
  23. प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
  24. प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
  25. प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
  26. प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
  28. प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
  29. प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
  30. प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
  31. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
  33. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  34. प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
  35. प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
  36. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
  40. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
  41. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
  43. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  44. प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
  45. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
  47. प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  48. प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
  49. प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
  50. प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
  52. प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
  54. प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
  55. प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
  56. प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
  57. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  62. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  63. प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  65. प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  66. प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
  68. प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  69. प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  70. प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
  71. प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
  72. प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
  73. प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
  74. प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
  75. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
  77. प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
  78. प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  79. प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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